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लेखनी कहानी -10-Jan-2023 मुहावरों पर आधारित कहानियां

2. एकता की शक्ति 

यह कहानी ओखली में सिर दिया तो मूसल की चोट से क्या डरना कहावत पर आधारित है । 

किसन के हिस्से में पांच बीघा खेत आया था । वह उसी में गुजारा कर रहा था । उसकी पत्नी धापा और वह दिन रात मेहनत करते थे तब जाकर उन गरीबों का पेट भर पाता था । किसन के तीन बेटियां थीं । राधा, सीता और गौरा । धापा एक धार्मिक महिला थी । भगवान में पूर्ण विश्वास था उसका । वह एक ही बात जानती थी, "मारने वाला है भगवान, बचाने वाला है भगवान" । जब कोई भक्त स्वयं को भगवान के आश्रित कर लेता है तो उसकी समस्त जिम्मेदारियां भगवान स्वयं ले लेते हैं । 

धापा कोई पढी लिखी महिला तो थी नहीं । उसने न कभी वेद पढे थे और न ही कभी रामायण, गीता पढी थी  । पर वह यह मानकर चलती थी कि दुनिया में जो भी कुछ होता है, सब कुछ भगवान ही करता है । मनुष्य तो बस निमित्त मात्र है । भक्ति आस्था का विषय है न कि तर्क का । अनपढ लोग तर्क नहीं करते , भक्ति करते हैं । तो भगवान की भी जिम्मेदारी हो जाती है उन्हें संभालने की । भगवान ने भी अपने भक्त की लाज रखी और धापा को एक पुत्र रत्न दे दिया । अपने खानदान का वह इकलौता चिराग था इसलिए उसका नाम कुलदीप रखा गया । 
किसना की हैसियत भैंस, गाय पालने की नहीं थी । लेकिन बच्चों को दूध, दही तो चाहिए इसलिए उसने एक बकरी पाल ली थी । उसका नाम रखा "जमना" । सनातन धर्म में सब जीवों पर दया रखने का भाव आत्मा में बसा हुआ है । इसके लिए किसी PETA से ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है । इसलिए किसन और धापा 'जमना' पर उसी तरह ममता लुटाते थे जैसे 'कुलदीप' पर वे वात्सल्य की बरसात करते थे । इस परिवार की सदस्य थी जमना बकरी । 
एक दिन जमना ने दो बच्चों को जन्म दिया । दोनों बच्चे बहुत सुंदर थे । चूंकि राधा और सीता बड़ी थीं । गौरा और कुलदीप छोटे थे तो राधा ने एक मेमने का नाम झबरा और सीता ने दूसरे मेमने का नाम जबरा रख दिया था । गौरा और कुलदीप दोनों झबरा, जबरा के साथ खूब खेलते थे । झबरा जबरा भी बड़ी जल्दी जल्दी बड़े हो रहे थे । धापा ने किसन को विशेष रूप से कह दिया था कि कहीं वह इन्हें किसी कसाई के हाथों में ना बेच दे । वैसे तो मेमनों का कोई उपयोग नहीं है । अगर मादा होती तो बड़ी होकर बकरी बनकर वह भी दूध देती । मगर नर का क्या उपयोग ? सिवाय कसाई के हाथ बेचने के । कसाई से कुछ रुपये मिल जाते उनके मगर कसाई उनका क्या करता , यह बात किसन और धापा दोनों भली भांति जानते थे । चंद पैसों के लोभ में अपनी "औलाद" को कटने के लिए कौन बेचता है ? धापा के लिए झबरा और जबरा अपने कुलदीप की तरह थे । वह उन्हें गोद में लेकर प्यार करती थी । उनके सिर पर हाथ फेरती थी । तब झबरा और जबरा दोनों भाई अपनी सुंदर आंखों से धापा को धन्यवाद कहते थे । 

जमना का दूध पीकर और धापा की ममता की खुराक खाकर झबरा और जबरा दोनों हृष्ट-पुष्ट हो गये थे । झबरा पांच मिनट पहले पैदा हो गया था इसलिए वह बड़ा भाई की भूमिका निभाता था । दोनों भाई साथ साथ खेलते थे, लड़ते झगड़ते थे लेकिन एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे । जबरा कभी भी झबरा की बात नहीं टालता था । अपने बड़े भाई की इतनी इज्जत करता था वह । 

झबरा और जबरा जब एक महीने के हो गए तो किसन जमना के साथ साथ झबरा और जबरा को खेत पर ले जाने लगा । वह और धापा दोनों मिलकर खेत में काम करते रहते थे और जमना को वे खेत में चरने के लिए छोड़ देते थे । जमना को हरी हरी घास ज्यादा पसंद नहीं आती थी । उसे तो कंटीली झाड़ियों से पत्तियां चुन चुनकर खाना बहुत अच्छा लगता था । इसलिए वह अपने खेत की मेड़ पर उग आई कंटीली झाड़ियों के पत्ते खाने के लिए वहां आ जाती थी । उसके पीछे पीछे झबरा और जबरा दोनों आ जाया करते थे । वे भी कांटों में से पत्तियां चरने का अपनी मां से प्रशिक्षण लेने लगे । 

पड़ोस में रतना का खेत था । उसने अपने खेत में मटर लगा रखी थी । झबरा और जबरा जब भी मेड़ पर आते , उन्हें सामने हरी हरी मटर दिखाई देती थी । झबरा बड़ा था इसलिए वह भला बुरा जानता था लेकिन जबरा छोटा था इसलिए वह चंचल था, शरारती था । उसका मन करता था कि वह भी हरी हरी मटर खाये । जमना ने जबरा को सख्त हिदायत दे रखी थी कि वह उसकी अनुपस्थिति में झबरा से पूछकर ही कोई काम करे, स्वयं की मर्जी से नहीं । उसने झबरा को भी हिदायत दे रखी थी कि वह किसी भी हालत में जबरा को अकेला नहीं छोड़े । दोनों बच्चे बड़े आज्ञाकारी थे और उन्होंने जमना को कभी शिकायत का मौका नहीं दिया था । 

एक दिन झबरा और जबरा दोनों खेल खेल रहे थे और खेलते खेलते वे जमना से दूर निकल आये थे । वहां पर मेड़ टूटी हुई थी उसमें से पड़ोस के खेत में जाया जा सकता था । जबरा के सामने हरी हरी मटर थी जो जबरा को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी । जबरा को खेलते खेलते भूख भी लग आई थी । उसका मन हरी हरी मटर खाने को मचल उठा । उसने एक कदम पड़ोस के खेत की ओर बढाया तो उसे अपनी मां जमना की बात याद आ गई । वह वहीं ठिठक गया । उसने अनुनय करने वाली नजरों से झबरा की ओर देखा और कहा 
"भैया, अगर आप अनुमति दें तो मैं हरी हरी मटर खाकर आ जाऊं" ? 
झबरा तुरंत बोल पड़ा "ये कैसे संभव है छोटे ? वो खेत हमारा नहीं है और दूसरों के खेत में से कुछ भी खाना चोरी करना है । क्या मां ने तुम्हें चोरी करने के लिए कहा है" ? 
झबरा की बातों से जबरा निरुत्तर हो गया । वह बुझे मन से घास चरने लगा लेकिन उसका ध्यान हरी हरी मटर में ही रमा हुआ था । 

झबरा ने जबरा को मना तो कर दिया था पर लार उसकी भी टपकने लगी थी । सामने ही तो हरी हरी मटर लटक रही थी । बस दो चार फर्लांग भरने की देर थी फिर तो स्वर्ग ही स्वर्ग था । लेकिन अगर खेत के मालिक ने देख लिया तो ? और फिर मां के आदेश का क्या होगा ? उसने मटर खाने के गंदे विचार एक झटके में दिमाग से निकाल दिये । गंदे विचारों को जबरन निकालना पड़ता है नहीं तो वे अड़ियल टट्टू की तरह दिमाग में अड़े रहते हैं । 

जबरा चूंकि छोटा था इसलिए थोड़ा उच्छृंखल भी था । उसका मन वहीं पर अटक गया था । "अगर एक दिन थोड़ी सी मटर खा भी लेंगे तो इससे कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा ? जबरा अभी तो एक महीने का ही है कितनी सी मटर खायेगा" ? जबरा ने ये सारे तर्क झबरा के सामने प्रस्तुत किये लेकिन झबरा टस से मस नहीं हुआ । बड़ा होने पर जिम्मेदारी का भाव जल्दी आ जाता है और यह भाव हमेशा कायम रहता है । यही बड़े होने की निशानी है । 

जबरा चलकर झबरा के एकदम पास आ गया और अपनी जीभ से झबरा को चाटकर चापलूसी करने लगा "ऐ भैया, जाने दो ना । बस दो चार मटर खाकर आ जाऊंगा । आपकी कसम" । इस तरह अगर कोई अनुनय विनय करे तो उसे कैसे ठुकराए कोई ? 

झबरा वैसे तो मन का बहुत पक्का था मगर जर, जोरू , जमीन और बढिया भोजन को देखकर हर किसी का मन डांवाडोल हो जाता है । झबरा का मन भी हरी हरी मटर को देखकर डोल गया था । वह भी उनका रसास्वादन करना चाहता था लेकिन चोरी पकड़े जाने का भय उसे यह काम करने से रोक रहा था । अंत में यह तय हुआ कि दोनों भाई उस खेत में जायेंगे और विपरीत दिशा में देखते हुए हरी मटरों का आनंद लेंगे जिससे दोनों ओर के खतरों को भांपा जा सके । बस तीन चार बार ही खायेंगे मटर, इससे ज्यादा नहीं । झबरा ने जबरा को समस्त दिशा-निर्देश भली भांति समझा दिए । दोनों भाई चुपके से पड़ोस के मटर के खेत में प्रवेश कर गये । 

दोनों भाई एक दूसरे से पीठ लगाकर हरी हरी मटर खाने लगे । "आहा ! कितनी मीठी मीठी हैं ये मटर । मन कर रहा है कि इन्हें खाते जाओ, खाते जाओ । क्यों है ना भैया" ? 
"ज्यादा लोभ मत कर छोटे । मैंने तुझे हिदायतें दी थी न , भूल गया क्या उन्हें ? मां कहती है कि लालच बुरी बला होती है । चल निकल चलें अभी" ।
"आप भी भैया कैसी बातें करते हो ? अभी तो जीना सीखा ही है और मरने की बात करते हो । अभी और खाने दो ना" 
"छोटे, सावधान  ! मुझे खतरा दिखाई दे रहा है । वो सामने से पड़ोसी का कुत्ता "शेरा आ रहा है । चल भाग चलें" । झबरा ने घबराते हुए कहा 
"बस, एक बाइट और ले लूं भैया , फिर चलते हैं" । जबरा ने मिन्नत की 
"छोटे, आज तू मरवायेगा हम दोनों को ! शेरा पास आ गया है । संभल" 

अब जबरा ने झबरा की ओर मुड़कर देखा तो उसके होश फाख्ता हो गए । सामने शेरा के रूप में साक्षात मौत खड़ी थी । जबरा डर के मारे थर थर कांपने लगा । झबरा ने समझदारी से काम लिया और वह जबरा के आगे डटकर खड़ा हो गया । उसने जबरा को समझाते और ढांढस बंधाते हुए कहा "घबराना नहीं छोटे । तेरा बड़ा भाई अभी मौजूद है । शेरा को तुझ तक पहुंचने के लिए पहले मुझसे युद्ध करना होगा" । 
झबरा की बातों से जबरा को भी जोश आ गया । वह अपने लालच के लिए अपने बड़े भाई को बलि क्यों देने दे ? गलती तो उसी की है । उसी ने ही जिद की थी । झबरा ने तो खूब समझाया था मगर वह ही अड़ गया था । पर अब क्या हो सकता है ? अब तो शेरा से युद्ध करना ही पड़ेगा । जब ओखली में सिर दे ही दिया है तो मूसल की चोट से क्या डरना ? जबरा ने सोचा । आत्म समर्पण करने से काम नहीं चलेगा । मां ने यह भी सिखाया था कि अगर कभी विपरीत परिस्थितियां उत्पन्न भी हो जायें तो उनसे पलायन नहीं करना चाहिए बल्कि उनका डटकर सामना करना चाहिए । और मां ने यह भी सिखाया है कि एक और एक ग्यारह होते हैं, दो नहीं । मतलब एकता में शक्ति है । अगर दोनों भाई मिलकर शेरा का मुकाबला करें तो शेरा को हरा भी सकते हैं । 
जबरा ने कहा "भैया, मैं भी आपके नेतृत्व में शेरा से युद्ध करूंगा । मैं डरने वाला नहीं हूं । हम दोनों मिलकर इसका मुकाबला करते हैं" 
"शाबास छोटे । यह हुई न बात । अब हम मिलकर लड़ेंगे । अब हमें कोई भी पराजित नहीं कर सकता है । ऐसा करना , जब यह आक्रमण करे तो हम दोनों एक साथ इसके पेट में अपने सींग घुसेड़ेंगे। यह फिर से आक्रमण करेगा तब भी हम ऐसा ही करेंगे । समझ गया ना छोटे" 
"समझ गया भैया । मैं तैयार हूं" 

इतने में शेरा भौंकता हुआ उन दोनों पर टूट पड़ा । दोनों भाई तैयार थे । शेरा का वार बचाकर दोनों भाइयों ने अपने नन्हे नन्हे सींग शेरा के पेट में घोंप दिये । शेरा कराह उठा । पर शेरा एक कुत्ता था और कुत्ता मेमनों से कैसे हार सकता था ? शेरा के स्वाभिमान को चोट पहुंची और वह फिर से गुर्राते हुए दोनों पर झपटा । इस बार भी दोनों वार बचा गये और फिर से अपने सींगों का भरपूर प्रहार शेरा पर किया । इस बार शेरा जमीन पर गिर पड़ा । दोनों भाइयों ने अपनी विजय पर "मैं मैं" करते हुए शंखनाद किया । 

इधर जमना ने शेरा के भौंकने की आवाज सुनी तो उसके कान खड़े हो गये । उसने अपने दांयें और बांयें देखा तो झबरा और जबरा दोनों को नदारद पाया । वह तुरंत समझ गई कि उसके दोनों बच्चे संकट में फंस गए हैं । अपने बच्चों के लिए एक मां तूफान से भी टकरा सकती है, शेरा की तो बात ही क्या है ? वह दौड़कर आवाज की दिशा में गई तो उसने वहां शेरा के सामने झबरा और जबरा को मुकाबला करते हुए पाया । उसने राहत की सांस ली कि दोनों भाई अभी तक सही सलामत हैं । पर खतरा अभी टला नहीं था । उसने आंखों के इशारे से दोनों बच्चों को समझा दिया कि अब उन्हें क्या करना है ? 

अबकी बार शेरा ने जोरदार भौंकते हुए झबरा और जबरा पर भरपूर प्रहार किया लेकिन जमना कूदकर बीच में आ गई और अपने सींग शेरा के पेट में घुसा दिये । उधर झबरा और जबरा ने शेरा के पीछे से जोरदार प्रहार किया । सबके सामूहिक आक्रमण से शेरा हतप्रभ रह गया और अब उसने वहां से भागने में ही अपनी खैर समझी । अपनी जीत का जमना, झबरा और जबरा ने रैप डांस करके जश्न मनाया । 

शोरगुल सुनकर किसन और धापा भी वहां आ गये और अपने तीनों बच्चे जमना, झबरा और जबरा को सही सलामत देखकर बहुत प्रसन्न हुए । उन्होंने शेरा को वहां से भागकर जाते हुए और इन तीनों को विजय का जश्न मनाते हुए देख लिया था । इस जश्न में वे दोनों भी शामिल हो गये । शास्त्रों में सच ही लिखा है कि एकता में ही शक्ति है । 

श्री हरि 
11.1.2023 


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6 Comments

Gunjan Kamal

20-Jan-2023 04:31 PM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌🙏🏻

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Hari Shanker Goyal "Hari"

22-Jan-2023 08:14 PM

धन्यवाद जी

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Mahendra Bhatt

13-Jan-2023 10:14 AM

शानदार

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Hari Shanker Goyal "Hari"

13-Jan-2023 04:37 PM

हार्दिक अभिनंदन आदरणीय

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अदिति झा

12-Jan-2023 03:50 PM

Nice 👍🏼

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Hari Shanker Goyal "Hari"

13-Jan-2023 04:37 PM

हार्दिक अभिनंदन मैम

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